भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ढलती एक शाम / मोहन राणा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 28 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन राणा |संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा }} कित...)
कितने आयाम कि चैन नहीं जिसमें
ली यह साँस करने यह सवाल
कि नहीं करूंगा फिर वही सवाल,
मैं चिड़िया हूँ या पतंग
या दोनों ही हूँ एक साथ
उस आयाम में
ढलती एक शाम
29.1.2006