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पेन्सिल / इब्तिसाम बरकत

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पत्थर से बनी यह मस्ज़िद
एक पेन्सिल की तरह खड़ी हुई है
यूकेलिप्टस के दरख़्तों से भी ऊँची
हमारे गाँव के ठीक बीचों-बीच

मस्ज़िद की मीनार गाती है
आकाश के कानों में
जब तक कि लोग उत्तर नहीं देते

हम नंगे पैर
प्रार्थना के लिए पंक्तिबद्ध शामिल होते हैं

हम गुज़ारिश करते हैं
कि आप मिटा दें
तमाम युद्ध

मिटा दें

हम गुज़ारिश करते हैं
कि आप मिटा दें
तमाम डर

मिटा दें ! मिटा दें !

हमारे मस्तक झुके हुए हैं
धरती की तरफ
रोज़ एक ही काग़ज़
हम लिखते और दोहराते हैं :

हर आदमी के जीवन में सुकून हो ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन मेहता