भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हंसवाहिनी / कैलाश पण्डा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:45, 12 अक्टूबर 2016 का अवतरण
ओ तेरे सान्निध्य में
ऋषिगण
ज्ञानमय दुग्धपान कर
कृतकृत्य हो
सुकृत सरोजमय
जलधार से सिंचित
उस पार बहते हुए चले गये
और, मैं तेरे अभाव में
शुष्क कंटमय वीरान सा
परिमित
अरू जीवन वाहक
बनकर रह गया
ओ रसातलवासिनी अब तो तुम
ऊर्ध्व गामिनी बन कर
पुनः बहो कपाल में
ओ माँ, मैं तेरा अर्चन करता
अपनी वीणा के तार से
वेद की ऋचाओं को
अनावरण कर दो
ओ हंसवाहिनी
अपने श्वेताम्बर से
जग को आवृत कर दो।