Last modified on 1 मई 2008, at 19:16

साँझ दुश्मन है / राकेश खंडेलवाल

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:16, 1 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = राकेश खंडेलवाल }} साँझ तन्हाई की चुपचाप चली आती है<br> औ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँझ तन्हाई की चुपचाप चली आती है
और अनचाहे मेरी आँख भिगो जाती है
साँझ दुश्मन है, कभी दोस्त नहीं थी मेरी

टुकड़े टुकड़े में बँटी चाँदनी दिखती ऐसे
फाड़ा हो प्यार का खत अपना किसी ने जैसे
सतरें हैं किन्तु इबारत नहीं दिख पाती है
साँझ तन्हाई की चुपचाप चली आती है

अजनबी रात के साये हैं प्रश्न चिन्ह बने
ख़्‍वाब धुँधलाते रहे याद की कीचड़ से सने
वक्त की पूँजी हवा छीन के ले जाती है
साँझ तन्हाई की चुपचाप चली आती है