Last modified on 26 अक्टूबर 2016, at 22:18

काली आही अंजोरी / चेतन भारती

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 26 अक्टूबर 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हाँसत गोठिया ली मुम्मत के छाँव में
जिन्गी जिये के अतके आस हे ।

मुस्कात रहय तोर खोर गली,
चल तो अइसन कारज करी
छितका कुरिया सरग बरोबर,
फेर मिल बइठन कदम तरी ।।
जिन्गी के रद्दा म अब्बड़ बिच्छल हे ,
सम्हल के चलना, अतके बात हे । जिन्गी जिये के....

सिसकत खड़े हावे कोन,
गली ह काबर कल्हरत हे।
सांस म धुर्रा के राज हावे,
रस्ता ह काकर बर दंदरत हे ।।
आज नीहि ते काली आही अंजोरी,
ओस के बूंद अस जिये के आस हे ।
जिन्गी जिये के ....

मनखे ह बनाये खींचातान जिन्गी,
मनखे-मनखे बर खखाय जिन्गी।
पोटरी के हिन्मान करत मनखे ,
मानुखपन ले जुआँ म हारत मनखे ।।
गुम सुम झन जिये गाेँव के गली,
आज जिन्गी बचाय के लगे दाँव हे ।
जिन्गी जिये के ...