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मातर जागंय / बुधराम यादव

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बड़ा अटेलिहा अहिरा छोकरा
दूध बिना नइ खावंय!
घाट पाट बीहर जंगल म
गाय अउ भैंस चरावंय!
भड़वा मन म दूध चुरोवंय
मरकन दही जमावंय!
भिनसरहा ले चलय मथानी
ठेकवन लेवना पावंय!
घी के बदला दूध ल अब तो
खोवा बर खौलावत हें!
चरवाही संग गाय भैंस के
रच्छा सुघर करे बर!
किसान कन्हानई कुल के देवता
पूजंय दुख हरे बर!
नवा खवावंय मातर जागंय
पुरखन ल फरियादंय!
गांव ठांव म सबके मंगल
ठाकुर देव ले मागंय!
बिन दइहान अब दुल्हादेव के
खोड़हर नइ पूजावत हें!

एकादशी देवारी धर के
कातिक तइहा आवय!
अंगना डेहरी तुलसी चौरा
म दीयना ओरियावंय!
रइया सुमिरंय अउ गोर्रइया
बस्ती के ओ मरी मसान
पुरखन के चौंसठ जोगनी ल
सुमिरंय, कहंय करौ कइलान!
घर अंगना का छन म तइहा कस
अब नइ खउरावत हें!

गोबर के सुखधना किसानन
के कोठी म मारंय!
अउ सुख सौंपत खातिर उंकर
सुघ्घंर शबद उचारंय!
गर म सुहई बांध गाय के
पइयां परंय जोहारंय!
अन-धन बाढय़ दूध बियारी
मालिक करव गोहारंय!
आज सुहई संग नेह के
लरी घलव मुरझावत हें!

सरधा जबर रहंय तइहा
अउ सिरतो म पुरसारथ!
पन अइसन कुछ बात घलव
जे लागंय निचट अकारथ!
बात बात म लाठी पटकंय
मुड़ अउ माथा फोरंय!
अपने जांघ उघारंय अउ
फदिहत कर दांत निपोरंय!
बाहिर ले उज्ज र झलके बर
अग भीतर फरियावत हें!

ठौर ठौर म देखव तो अब
राउत नाचा होथे!
कला समुंद म लोक के जानव
कइ बूंद अपन समोथें!
साजू बाजू कलगी पगड़ी
घुंघरू मुंदरी माला!
फरी हाथ संग दू ठन लाठी
ऊपर फरसी भाला!
पुरखन के बाना ल धर के
जुग संग कदम मिलावत हें!

चमक धमक अउ सिरिफ देखावा
दिन दिन बाढ़त जाथे!
गड़वा बाजा अहिरा बाना
दोहा घलव नदाथें!
गय ठाकुर के ठकुरी जानव
अउ अहिरन के अब तो मान!
उतियाइल मन मुखिया होगंय
धरसा तक म बोइन धान!
सरोकार सब लोगन मन के
नदिया जनव सरावत हें!

धरती पिरथी पुरखा पुरबज
मन के भाखा बानी!
झुमरंय नाचंय अउ बजावंय
गावत रहंय जुबानी!
अतमा सगा परतमा बइठे
जुरके सुनय सुनावंय!
ये ओड़हर म अंतस के सब
इरखा डाह बुझावंय!
अब पहुना के आवब कलकुत
जावब जबर सुहावत हे!