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विराम / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / ओक्ताविओ पाज़

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पीयर रेवर्दी की स्मृति में

आ चुके हैं
कुछ पक्षी
और निष्प्रभ विचार

वृक्षों की सरसराहट
ट्रेनों और इंजनों की धड़-धड़
यह क्षण आ रहा है या जा रहा है?

सूर्य की ख़ामोशी
बेधते हुए रुदन और हँसी
भीतर ले जाता अपना तेज़
चट्‌टान-दर-चट्‌टान।

तेज़ सूर्य, धड़कती चट्‌टान,
एक फल में तब्दील होती यह रक्त-चट्‌टान :
खुलते हैं घाव बिना दर्द के
मेरा जीवन बहता जीवन की तरह।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’