भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जनतन्त्र / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / लैंग्स्टन ह्यूज़
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 30 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लैंग्स्टन ह्यूज़ |अनुवादक=बालकृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नहीं आएगा जनतन्त्र
आज, इस साल,
न ही कभी
समझौते और भय से।
मेरे पास है उतना ही अधिकार
जितना है दूसरे के पास
ताकि खड़ा हो सकूँ
अपने दो पैरों पर
और हो ज़मीन मेरी ख़ुद की।
मैं लोगों से यह सुनते हुए थक गया हूँ
कि चीज़ों को लेने दो अपना समय।
कल एक दूसरा दिन है।
मैं नहीं चाहता हूँ अपनी स्वतन्त्रता जब मैं मर जाऊँ।
मैं नहीं रह सकता हूँ जीवित कल की रोटी के भरोसे।
स्वतन्त्रता
एक शक्तिशाली बीज है
जो रोपा गया है
बहुत ज़रूरी होने पर।
मैं भी रहता हूँ यहाँ।
मुझे चाहिए स्वतन्त्रता
ठीक तुम्हारी तरह।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’