भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह आकार है -3 / मंगेश नारायणराव काले

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 5 दिसम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंगेश नारायणराव काले |अनुवादक=सर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक गाँव
अगर दूसरे गाँव के आकार को निभा दे
तो बचता ही कहाँ है गाँव आख़िर?

यानी दो गाँव हो सकते हैं एक ही नाम के
या हो सकते हैं हू-ब-हू एक-दूसरे के जैसे
दोनों की परछाईं भी हो सकती है एक सी
फिर भी होता ही है अलग कुछ न कुछ दोनों गँवों में

यानी इस गाँव का जामा
उस गाँव को नहीं पहनाया जा सकता

मूल मराठी से अनुवाद : सरबजीत गर्चा