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सच्चाई / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
सन्नाटे में
रात का एक कोना
यादों के
घने जंगल चीरकर
आँखों में समाया रहा
टकटकी बाँधे
अँधेरे में
हाथ मारता रहा
कोशिश में लगा रहा
कुछ पकड़ने की
तभी कोई जुगनू चमका
और रोशनी की शक्ल में
उजाला बनकर
फैलता चला गया
पूरी हथेली पर
तृष्णा कहती है
हथेली को
मुट्ठी में बदल दूँ
सच्चाई कहती है
क्या मिलेगा