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सफ़र से रिश्ता / डी. एम. मिश्र

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टूटे नहीं
जिन्दगी का
सफ़र से रिश्ता
पाँव की जो धूल
उसका भी बड़ा दर्जा

आओ बनायें रास्ते
बेहतरी के वास्ते
जिस पर
हवा भी डोले तो
आराम से

एक पत्थर
ठोकरें देता
पर, दूसरा
पक्की सड़क बनता
एक काँटा
पॉव में चुभता
पर, दूसरा
रक्षा में होता

जंगलों के बीच से भी
निकल आते रास्ते
कालिमा को चीरकर
जैसे किरन फूटे