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महाकाव्य लेख… ! / गीता त्रिपाठी

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महाकाव्य लेख कवि, मेरो दुःख टिपी
दुनियाँले बुझेन खै यो आँसुको लिपी !

झेल्दैछु म महाभारत, शकुनिका पासा,
बुझे पनि नबुझे झै कपटका भाषा !

यै छातीमा दुख्छन् अझै द्रौपदी र सीता,
सारथि भै आऊ लेख यो युगको गीता !

खेलूँ कति आगोसँग परीक्षा म दिऊँ,
अञ्जुलीमा जिन्दगीको भिक्षा कति लिऊँ !

धर्ती अब फाट्दैन मुटुमात्र फाट्छ
तिमी विना मेरो व्यथा अरू कसले बाँड्छ