Last modified on 4 जनवरी 2017, at 15:52

महाकाव्य लेख… ! / गीता त्रिपाठी

Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 4 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गीता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

महाकाव्य लेख कवि, मेरो दुःख टिपी
दुनियाँले बुझेन खै यो आँसुको लिपी !

झेल्दैछु म महाभारत, शकुनिका पासा,
बुझे पनि नबुझे झै कपटका भाषा !

यै छातीमा दुख्छन् अझै द्रौपदी र सीता,
सारथि भै आऊ लेख यो युगको गीता !

खेलूँ कति आगोसँग परीक्षा म दिऊँ,
अञ्जुलीमा जिन्दगीको भिक्षा कति लिऊँ !

धर्ती अब फाट्दैन मुटुमात्र फाट्छ
तिमी विना मेरो व्यथा अरू कसले बाँड्छ