भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूक्तिहरु / राजीवलोचन जोशी
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:53, 5 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= राजीवलोचन जोशी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मदन शर विझेको उल्टिको चाह गर्छू
अमृत पर अफाली झैं म ता प्राण धर्छू ।
सकल बुझि नराखी सामु हुन्नौ पियारी
टपरि ख पर चालामा रहीछौ तयारी ।।१।।
अयि पतलि पियारी खाटमा जल्दि आऊ
खुप खिंचि कर बन्धन् घाँटिमा लौ लगाऊ ।
यति सुनि पतिको बात् बाति हेरी ह्रूँदी भै
हरि हरि हरिणाक्षी लाज् नदीमा डुबी गै ।।२।।
(*सूक्तिसिन्धु (फेरि), जगदम्बा प्रकाशन, २०२४)