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सुन्‍ता के खेती / नूतन प्रसाद शर्मा

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जउन डहर ले जुरमिल जाबो,रद्दा बनही अपने आप।
देख के हमर हिम्मत पौरूष ल दसो दिशा हा जाही कांप।

एक सूत मं हाथी कभू बंधाय नहीं मोर मितवा रे
उही ल डोर बनाबो त बंधाही बघवा चितवा रे
तीन छै के दिशा ल संगी, ऐके दिशा मं जल्दी खाप।

सुन्ता के खेती मं बनथे अड़बड़ बिगड़े बूता हा
कभू बियापे नई कोई ल बरसा जाड़ के जूता हा
कहूं उमड़ जाबो एक्‍के मिल बेर सरग ल लेबो नाप।

एक खेत के कांद निकाले बर कई मनखे लग जाथे
जोरफा देख के कठिनाई हर पूंछी उठा के भागथे
अनगिनती हन का कर लेही दुख विपदा के अंधरा सांप।

उल्टा पुल्टा रेंगय मं सब काम बिगड़ जाथे ठउका
अलग -अलग पतवार च ले मन धार बीच मं उलटथे नउका
तुम ज्ञानी हो पर काबर बइठे हो चुप्पे चाप ।