भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे / डी.एम.मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:10, 9 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> पु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे
हर कदम पर भेड़िये पहले न थे।

अब के बच्चे भी तमंचे रख रहे
इतने सस्ते असलहे पहले न थे।

जल को भी दरपन बना लेते थे लोग
इतने गँदले आइने पहले न थे।

देश में पहले भी नेता हो चुके
यूँ लुटेरे दोगले पहले न थे।

दोस्तो कितना पतन होगा अभी
इस क़दर पुल टूटते पहले न थे।

माँगते थे पुत्र, पैसे बाप से
हक़ जताकर छीनते पहले न थे।

जब से छूटी नौकरी यह हाल है
यूँ सनम तुम रूठते पहले न थे।