भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्याप्त प्रचुर सुशालि धान्यों... / कालिदास
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:23, 6 मई 2008 का अवतरण (New page: # {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=ऋतुसंहार / कालिदास }} Category:संस्कृत ...)
|
- लो प्रिये हेमन्त आया!
व्याप्त प्रचुर सुशालि धान्यों
- से हुआ रमणीय सुन्दर
हिरनियों के झुण्ड से
- शोभित हुआ अब अवनि प्रान्तर
अति मनोहर क्रौञ्च के
- कलनाद से गुंजित मनोहर
दूर सीमान्तर ललित तक
- एक जादू सा रिझाया,
शोभनीय सुडोल स्तन का
- लो प्रिये हेमन्त आया!