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कास कुसुमों से मही औ"... / कालिदास
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- प्रिये ! आई शरद लो वर!
कास कुसुमों से मही औ" चन्द्र किरणों से रजनी को
हंस से सरिता-सलिल औ" कुमुद से सरवर-सुरम को,
कुमुद भार विनीवसप्तच्छदों से उन वनान्तों को
शुक्ल करती, प्रतिदिशा में दीप्ति फैला अमल शुचितर,
- प्रिये ! आई शरद लो वर!