भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज्योति पर्व : ज्योति वंदना / नरेन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:21, 6 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा }} जीवन की अंधियारी रात हो उजारी! :धरती ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन की अंधियारी रात हो उजारी!

धरती पर धरो चरण

तिमिर-तम हारी

परम व्योमचारी!


चरण धरो, दीपंकर,

जाए कट तिमिर-पाश!

दिशि-दिशि में चरण धूलि

छाए बन कर-प्रकाश!

आओ, नक्षत्र-पुरुष,

गगन-वन-विहारी

परम व्योमचारी!


आओ तुम, दीपों को

निरावरण करे निशा!

चरणों में स्वर्ण-हास

बिखरा दे दिशा-दिशा!

पा कर आलोक,

मृत्यु-लोक हो सुखारी

नयन हों पुजारी!