भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तड़ित रश्मियाँ / शैलेन्द्र चौहान
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:22, 7 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान }} पेड़ पर टंगी उदासी पूर्णिमा के चाँ...)
पेड़ पर टंगी उदासी
पूर्णिमा के चाँद की तरह
झाँकती है स्पष्ट
- कोहरे में छुपी
- धूल में लिपटी
- बारिश में भीगी
- मेघ गर्जन सी
- तड़ित रश्मियाँ
- एकाएक छिटक जाती हैं
- देश-प्रदेश के
- सीले भू-भाग पर
- कौंधती हैं स्मृतियाँ
- बीते युगों की