बेटी बिन सुन्ना हे, घर परिवार
बेटी बनके लछमी, ले अउतार।
घर के किस्मत देथे, इही सँवार
बिन बेटी के कइसे, परब-तिहार।
बेटी के किलकारी, काटय पाप
मंतर जइसे गुरतुर, मंगल जाप।
तुलसी के बिरवा कस, बेटी आय
जेखर आँगन खेले, वो हरसाय।
सुनो गुनो का कहिथें, सबो सियान
महादान कहिलाथे, कन्या-दान।
अरे कसाई झन कर, अतियाचार
बेटी के पूजा कर, जनम सुधार।