भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मनखे / अरुण कुमार निगम
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:36, 23 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कुमार निगम |संग्रह= }} {{KKCatChhattisgarhiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
छल-बल न छलावा, छोड़ दिखावा, ताम-झाम ले दूर रहै,
मनखे - ला जाने, मनखे माने, दया - मया मा चूर रहै।
सुध-बुध बिसरा के, मूड़ नवा के, जनहित बर जे, काम करै,
सहि पीर पराई, करै भलाई, अमर अपन वो, नाम करै।
</poem