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क़ैदी के पत्र - 6 / नाज़िम हिक़मत
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उष्ण और चंचल
नाड़ी में दौड़ती रक्तधार की भाँति
बहता है दक्षिण-पवन।
सुनो, सुने, उसके स्वर,
पहले से कुछ धीमी हो गई है धड़कन
निश्चय ही उलुदाग़ पर्वत की चोटी पर बर्फ़ गिर रही है
और ऊपर वहाँ रहने वाले रीछ
चेस्टनट वृक्ष की लाल-लाल पत्तियों पर
मधुर सुरम्य नींद में खो गए होंगे।
और मैदानों में नरकट की झाड़ियाँ नंगी हो रही होंगी
रेशम के कीड़े बहुत जल्द ही अपने को ढँक लेंगे
बहुत जल्द हेमन्त का अन्त होने को है
एक और जाड़ा बीत जाएगा
और हम तापेंगे
अपने क्रोध की आग जला-जला
अपनी पुनीत आशा की आग जला।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : चन्द्रबली सिंह