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राह हारी मैं न हारा / शील

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राह हारी मैं न हारा !

थक गए पथ धूल के —
उड़ते हुए रज-कण घनेरे ।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिह्न मेरे ।
जो प्रकृति के जन्म ही से —
ले चुके गति का सहारा !
राह हारी मैं न हारा !

स्वप्न मग्ना रात्रि सोई,
दिवस संध्या के किनारे
थक गए वन-विहग, मृग, तरु —
थके सूरज-चाँद-तारे ।
पर न अब तक थका मेरे —
लक्ष्य का ध्रुव-ध्येय तारा ।
राह हारी मैं न हारा !

3 नवम्बर 1945