भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खाली आदमी और खाली चीज़ें / योगेंद्र कृष्णा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रेत पर बिखरे पड़े अवशिष्ट
अनाम सैलानियों के ही नहीं
समुद्र और कई कई और भी
अनाम चीज़ों और रिश्तों
के ठौर बताते हैं

माचिस की अधजली तीलियां
बताती हैं कि अधजले
सिगरेट के टुकड़े भी ज़रूर
यहीं कहीं पास हैं
 
वे बताते हैं कि
अवशिष्टों के आपसी रिश्ते
आदमी के रिश्तों से भी कहीं
अधिक गहरे और खास हैं
 
कि सिगरेट के डब्बे
और बियर कैन या बोतलों
के बीच रिश्तों की अहमियत
किसी और के लिए
खाली हो जाने में है
 
जैसे एक भरा-पूरा आदमी
दूसरे भरे-पूरे आदमी से
कभी वैसे नहीं जुड़ता
जैसे एक खाली आदमी
दूसरे खाली आदमी से
कोई खाली चीज़
दूसरी खाली चीज़ से
 
जैसे जुड़ती है एक खाली जगह
सांय-सांय हवा के साथ
दूसरी खाली जगह से
फिर खाली जगहें
या खाली आदमी दरअसल
उतने भी खाली नहीं
जितने कि वे
भरे-पूरे आदमी को दिखते हैं
 
लेकिन कितना अद्भुत है
खाली चीज़ों के साथ
खाली आदमी का रिश्ता
 
भरा-पूरा एक आदमी
भरी-पूरी किसी चीज़ को
सिर्फ़ खाली कर सकता है

खाली आदमी
खाली चीज़ों को
सिर्फ़ भरता है
और उसे भरने में
खुद और भी
खाली हो जाता है
 
लेकिन हर खाली चीज़
उन्मुक्त होती है
कई-कई बंधनों और गिरफ़्त से
 
जैसे कि हमेशा के लिए मुक्त होता है
पीने के बाद छोड़ दिया गया
सिगरेट का कोई अधजला टुकड़ा
दो अनाम होठों या दो उंगलियों
के बीच की गिरफ़्त से

लेकिन ख़बरदार
कि अब खाली जगहों
खाली आदमी और उनके
अटूट रिश्तों पर
उनकी छोटी-छोटी खुशियों
आंसुओं और शोक पर भी
चौकन्नी नज़र है
भरे-पूरे आदमी की

कि वह भर देना चाहता है
दुनियाभर के नये-नये कचरों से
तमाम खाली जगहों
और खाली आदमी को
 
दरअसल हर आदमी पर
उसकी नज़र है
क्या खाली क्या भरा है
क्या ज़िंदा क्या मरा है
हर उस जंगल
जो अबतक हरा है
हर उस पहाड़
जो अबतक खड़ा है

समुद्र की हर बूंद
रेगिस्तान की हर रेत
और बंजर या फसलों से
लहलहाते हर खेत
पर उसकी नज़र है