भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच का मंज़र / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:37, 30 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा |संग्रह=कविता के...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम्हारी आवाज इतनी
दबी-दबी सी क्यूं है
तुम्हारा चेहरा इतना
बुझा-बुझा सा क्यों है
दिन इतना अंधेरा
और रात इतनी
धूप में जैसे
खिली-खिली सी क्यों है
सच का मंजर
कालिख से इतना
पुता-पुता सा क्यों है...