Last modified on 30 जनवरी 2017, at 14:42

तुम्हारा होना / योगेंद्र कृष्णा

योगेंद्र कृष्णा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 30 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा |संग्रह=कविता के...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जैसे अर्ध-रात्रि की
अर्ध-निद्रा में
स्वप्न की भाषा में
संवाद करती हो कोई आत्मा

जैसे नीम-बेहोशी में
सुनाई पड़ता हो
कोई प्रीतिकर संगीत

जैसे गर्मियों की
बदहवास दोपहर और
सुस्ताई सांझ के बाद भी
अमावस की रात में
चमकता हो कोई चेहरा अम्लान

जैसे बेहद असहज
और बीहड़ चुप्पियों को
हौले से तोड़ता हो कोई शब्द

जैसे अंधकार की स्वप्निल कौंध में
चूमती हो कोई आवाज

जैसे बहुत दूर से आती
मद्धिम पड़ रही किसी पुकार में
ठहर जाता हो कोई उम्र भर...