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अनुभवी हाथ / असद ज़ैदी

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अब किसी को याद नहीं एक ज़माने में मैं
ब-यक-वक्त रंगमंच समीक्षक और
राशिफल लेखक हुआ करता था
एक अख़बार में जिसके मालिक थे एक बुज़ुर्ग स्वतन्त्रता सेनानी
और सम्पादक उनका भूतपूर्व कमसिन माशूक
जो अब चालीस का हो चला था
और जिसकी आँखें एक आहत इन्सान की आँखें थीं

तुम्हें यहाँ दोहरी भूमिका निभानी है —
सम्पादक ने मुझसे कहा और गौर से मेरे चेहरे को देखा —
दिन में राशिफल बनाकर देना है और रात को नाटक समीक्षा
पर देखो उल्टी चाल नहीं... कि यहाँ नाटक करो और
शाम को वहाँ नजूमी बनकर हाथ देखने लगो, हा हा...
और सुनो पहले तीन महीने यहाँ नाम नहीं छपता।

मैं क्या कहता आदमी वह शायद बुरा न था
तो मैंने धीरे से कहा — जी ठीक है।

हफ्ते भर ही में गुल खिलने शुरू हो गए
वहाँ के कम्पोज़ीटरों ने मुझे हाथों हाथ लिया, कहते — अरे भैया तुम कहाँ से आए
मेरे लिखे अतिनाटकीय और मसालेदार भविष्यफल को वे
वह मज़े लेकर पढ़ते और कभी कभी गैली-प्रूफ दिखाने के बाद
अपनी तरफ से उसमें चुपके से कुछ जोड़ दिया करते

वही थे मेरे असली साथी और हमदम
लैटरप्रैस और सीसे के टाइपों के उस धुँधले युग में

और शहर की तमाम नाटक मण्डलियाँ जल्द ही मुझसे खार खाने लगीं
और शहर की वह प्रमुख अभिनेत्री जो गृहमन्त्री की कुछ लगती थी
एक औसत दर्जे की अभिनेत्री कहे जाने पर इतना बिगड़ी कि
नौसिखिए समीक्षक के बजाए सम्पादक के पीछे पड़ गई।
तीन ही महीने लगे मेरी छुट्टी होने में, सम्पादक ने मुझे लगभग
प्यार से गले लगाया — अरे मियाँ, कैसे तुमने इतने कम समय में
इतने दुश्मन पैदा कर दिए? हर कोई मेरे ख़ून का प्यासा घूमता है...
वो शहज़ादी कहती है मैं ही सब लिखवा रहा हूँ
और घटिया ड्रामे करने वाला वो कमीना डायरेक्टर, वो भड़ुआ, वो... वो दलाल...
उसे मेरे खिलाफ़ उकसाए जा रहा है...
क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे लिए मेरी नौकरी जाए?

सूखे गले से मैंने कहा — नहीं
आपकी क्यों...'

उसने कहा —
मालिक से उनके घर पर मिल लो, तुम्हें पूछ रहे थे।

अब मेरा और क्या बिगड़ सकता है मैंने सोचा
कुछ ही देर बाद मैं बैठा था स्वतन्त्रता सेनानी के आमने-सामने।

सोचा एक बार तुम्हारे दर्शन तो कर लूँ — उसने कहा —
और तुम्हें यह कहूँ कि मुझे हमेशा अपना शुभचिन्तक मानना, बिल्कुल
तुम मेरा राशिफल बहुत अच्छी तरह बताते रहे हो ज्योतिष पर तुम्हारी पकड़ है
और अपने ग्रह नक्षत्र देखने की तुम्हें अभी कोई ज़रूरत नहीं...
तुम बड़े तेज़ और होनहार नौजवान हो, बस
थोड़ा सँवरना दरकार है...
जिसके लिए इस घर के दरवाज़े हमेशा खुले हैं यह याद रखना... फरज़न्द।'

और यह कहकर
उसने अपना पुरातन और बेहद उदास हाथ मेरी तरफ बढ़ाया

मुझे वह सचमुच एक उदास आदमी मालूम हुआ।