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जा रही हैं गाड़ियाँ / रफ़ीक सूरज

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जा रही हैं गन्ने से भरी गाड़ियाँ चीनी मिल की दिशा में
मेरे घर के सामने वाले रास्ते से
सोडियम वेपर के प्रचण्ड उजाले में
मुझे साफ़ दिखाई दे रहा है चिल्ला जाड़ा
चिल्ला जाड़े में अधनींदा गाड़ीवान कम्बल लपेटे
पीछे गाड़ी में गन्ने के बहुत बड़े ढेर पर उसकी औरत
छोटे से बच्चे को अपने आग़ोश में लिए फैली पड़ी है
धूप में सुखाने डाले गए पुआल की तरह

गोबर से भरे अपने पुट्ठों को गाड़ी से सुरक्षित दूरी पर रख
एक शान्त लय में बैल खींच रहे हैं गाड़ी
चलने की आवाज़ न होने पाए इसलिए
उनके पैरों में साइलेंसर लगाए गए हों जैसे..
कोई ट्रैक्टर-ट्रॉली वाला निकल जाता है गाड़ी से आगे
कुत्सित हँसी के साथ ओवरटेक करके
तब बैल थरथराते हैं अपने अस्तित्व मात्र के सर्द भय से
डरी हुई आँखों के साथ खींचते रहते हैं जगन्नाथ का रथ
मिल की दिशा में
आर्तनाद करते हुए....

मैं देखता रहता हूँ खिड़की से
मिल की ओर जाने वाली गाड़ियों का दृश्य
शरीर पर गर्म शाल लपेटे
मेरी ओर पीठ किए लेटी पत्नी को बाँहों में भींचे
मैं सावधानी बरतता हूँ कि सोडियम वेपर के उजाले का यथार्थ
आँखों तक न पहुँचे
मादक इस जागने को परे ढकेल
मस्त ओढ़ लेता हूँ अलस्सुबह की प्यारी नींद!

मराठी से हिन्दी में अनुवाद : भारतभूषण तिवारी