Last modified on 13 फ़रवरी 2017, at 21:06

सुप्त मेरे प्राण जागो! / अमरेन्द्र

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 13 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=दीपक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुप्त मेरे प्राण जागो!
शुद्ध मन के ध्यान जागो !

बीज जागो, विटप जागो,
फूल जागो, गंध जागो !
हो पवन के पंख मधुमय
कोष के मकरन्द जागो !
क्षिति, सलिल, आकाश जागो!
अग्नि जागो, वायु जागो,
रूप जागो, रस-परम सब
विश्व भर की आयु जागो!
राग के संग रागिनी तुम,
मानिनी के मान जागो !

शरत् की शोभा जगी है
सामने देवी विहंसती,
चर-अचर जड़ और चेतन
स्नेह से सबको परसती;
छुट रहे हैं ताप तीनों
लोक, गुण औ देव त्राय से,
वत्सला बन अगम सम्मुख
झुक गये हैं सब विनय से;
देश जागो, काल के संग !
लोकहित विज्ञान जागो !