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पक्षघातित सफर / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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कहाँ आ गया?
मैं
किस आखेटक का-
शिकार-
पक्षाघातित सफर
अचानक
ठहर गया है
अथवा
किसी बड़ी इच्छा-मशीन ने
धक्का देकर रोक दिया है
रक्त बीज की गूढ़ प्रतीक-कथा के
अर्थ खोजने वाले
किसी रहस्यान्वेषक के पावों को;
और
सामने कोई बहुत परिचिता छाया
मुझे झाँकने को कहती है-
बिना जगत के एक कुएँ में
कई हाथ नीचे तक जिसकी
उखड़ी हुई लखौरी ईंटें
झरबेरी, सेंहुड़, मदार के पेड़
झाड़-झंखाड़
सभी ने छिपा दिया है अथाह जल को
बैठ गया है घेर चतुर्दिक
सर्पाकार
सर्द गहरा घना अंधकार।

आती है
भीतर से जल की गुहार
बाहर का प्यासा कोलाहल
अपनी ही जड़ता का शिकार
नहीं सुन रहा तृप्ति प्रदाता (मैं)
..... मेरी पुकार।