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ओ मेरी तुम / कुमार मुकुल
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ओ
मेरी तुम
लुका छिपी अब
बहुत हो गयी
सारे सपने
रात धो गयी
सोग मनाना
व्यर्थ है अब तो
चलो करें
उदयोग नया कुछ
तोडें
नयी जमीन।