भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गळगचिया (1) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 3 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सिंझ्या हूँता ही मिनख उठयो अर दीयै रै मूंडै ऊपर तूळी मेळ दी। दीयो चट्ट चट्ट कर’र बोल्यो-बड़ा आदमी इयाँ के करै है ? मिनख हँस’र बोल्यो-अरै तूं हो के ? मन्नै अंधेरै में सूझ्यो ही कोनी !