भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संताप / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:40, 3 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुप्रिया सिंह 'वीणा' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुमन के दोष बस अतना कि, बगिया में खिली गैलै।
पवन के जोस-तेवर तेॅ सभ्भे मांटी में मिली गैलै।
सतैभेॅ तेॅ भला केतना गिरै के अंत कहाँ होतै।
डरी-डरी केॅ ऊ आखिर निडर होये केॅ खड़ा होलै।
सभ्भे के अंत छै निश्चित, अंधरिया रात भी बिततै।
सुक्खोॅ के चाह में पंछी, उड़ी आकाश में गैलै।
समर्पण में तपी केॅ फूल आबेॅ अंगार बनलोॅ छै।
ढोवै कब तक कहो रिश्ता, हृदय संताप बनी गैलै।