सत्ता मद में देखी लेॅ, सब के एक्के रंग।
जहर सें भी जहरीला, लागै झूठ भुजंग।।
हाँकै लाठी एक सेॅ, जाति के हुरदंग।
सब रोॅ बुद्धि शून्य छै, चलै भेड़िया संग।।
बात अनर्गल व्यर्थ में, छोड़ै जेनां तीर।
के लिखतै केनां भला, दुनिया के तकदीर।।
फैशन के अंधेर में, पिन्हैं आधा चीर।
लज्जा सिहरै गर्भ में, मनमा आय अधीर।।
घर में काम करी थकोॅ, डिगरी के ही संग।
नै तेॅ बेटी तोरा तेॅ, कहतौं लोग बेढंग।।
आबेॅ नीति के यहाँ, होय छै बंदरबाँट।
योजना फाइल में रहै, सबके साठंे-गाँठ।।
दुश्मन नै छेकै बहू, झुट्ठे काली माय।
करनी फल चखबोॅ यहीं, गंगा लाख नहाय।।
काला धन के देखी ले, काले छै करतूत।
झूठे गद्दी बैठी केॅ, बनलोॅ छै अवधूत।।
बदलै नै नियत कभी, बदलै नै छै रंग।
आगिन चंदा साथ छै, अजगर चंदन संग।।
एक उठैभोॅ औंगरी, कटथौं पाँचों वार।
गुण-दोसोॅ के आकलन, दू धारी तलवार।।
वार्तालाप संवाद समाप्त |