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नव अर्थतंत्र / अमरेन्द्र
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कभी नहीं जो बाप बन सका बेटा बना हुआ है
अर्थजगत के नये शास्त्रा को सारे घोक लिया है
बहती पूंजी की गंगा को घर में डाल दिया है
घर का गंेंदा गाछ, गजब का बरगद बना हुआ है।
बाप बढ़ा, तो मिल तक पहुँचा; बेटा करे मिलावट
घी नकली है, दूध-दही भी, तेल तलक ना सूचा
बदल गया व्यापार-जगत का अब तो खेल समूचा
दूर तलक ना असली की है कुछ भी कहीं से आहट।
आटा नकली, मैदा नकली, और दवाई नकली
नौनिहाल बेटे का करतब बापू को चकराए
केरोसिन तक नकली, खुद को कैसे आग लगाए
फूट-फूट कर जी भर रोई गाँधी जी की तकली।
धनिक-तंत्रा में क्या अशक्य है, सब कुछ ही है शक्य
अर्थशास्त्रा ले मारा-मारा फिरता है चाणक्य ।