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शरणार्थी / शारदा झा

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पृथ्वी भ' गेल छथि निरीह सन
बाँटि देल गेल छथि
छोट छोट भाग मे
समाहित नै क पाबि रहल छथि
अपने संतान के
अपनहि कोरा मे
मायक प्रेम बिला गेल सन् छनि
मूक दर्शक भ देख'के
श्राप सँ मुक्ति कहाँ?
विश्व व्यापी परिवार मे
मायक भेल बखरा
कने हमर
कनेक तोहर
कनेक ओकर
मुदा सबहक होबाक सौभाग्य कत'?
उपटि रहल छनि संतति
मृत्युक् ग्रास बनि
युद्ध, अन्धकार, बारूद, रक्तपात
सँ दूर होबाक चेष्टा मे
फरीछ अकासक दिस गमन
करैत परिवार,
मुदा त्राण कहाँ?
मिट्ठ प्रेमक स्वादक सन्धान मे
जीवनक तीत घुट्टी
पिबय पड़ि रहल छनि
अपने मायक कोरा मे
कहा रहल छथि शरणार्थी
परिवार मे, विश्व मे कतहु ठांउ नै
मरू,जीबाक स्वप्न देखू
मुदा कहियो मनुख नै कहायब
रहब शरणार्थीये टा
विश्व परिवार पर कलंक
मानवता पर आघात
अपनहि घर मे बंदी
शरणार्थी??