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बम्बई-4 / विजय कुमार
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सुबह मैं सूरज-सा
एक अंधकार से निकल
शहर में आऊंगा
मैं आऊंगा हाथ जोड़े हुए
कमर झुकाए
सुनो मेरे साथियो
गाड़ियाँ ठीक समय पर चल रही होंगी
सही सलामत होंगे फ्लाईओवर
संतों की तरह खड़े होंगे पुराने मकान
धीरे-धीरे मैं इस शहर की गति पकड़ लूंगा
फिर एक दिन मैं बूढ़ा हो जाऊंगा
सभी की तरह मेरा जीवन भी छॊटा-सा होगा
मैं नाती-पोतों के संग
परिवार के चित्र में खड़ा
अपने जवानी के संघर्षों की कहानियाँ सुनाऊंगा
मैं इस शहर का इतिहास बताऊंगा।