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जंगल होती वह / रति सक्सेना

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वह जो जो कहता गया

यह वह वह मानती गई

उसने कहा-- तेरी आँखे कमल की पंखुड़ियाँ

इसने कहा-- अच्छा

उसने कहा-- नाक तोते की चोंच

इसने कहा-- अच्छा

और होंठ रसभरियाँ, दाँत दाड़िम

स्तन कमर जांघे


इसने टटोल कर देखा देह का टुकड़ा टुकड़ा

आँखे मूंदे कहती रही हाँ... हाँ... हाँ...


अब वह थोड़ी वनस्पति थोड़ी पंछी

थोड़ी-सी जानवर

बन गई थोड़ा-सा आसमान

टहनियाँ खिलीं फूल सूखे

न जाने कब बीज टपक गया कोख से

चल दिया दरख़्त की यात्रा को

इस बार वह कह न सकी हाँ... हाँ... हाँ...

झरने लगा रोयाँ-रोयाँ

बनती हुई भरपूर जंगल

सोचने लगी क्यों नहीं किसी ने कहा

"तेरी कोख है सबसे सुन्दर"