भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारा अधिकार / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:08, 12 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेरणा सारवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बन्द खिड़की के
छोटे से छिद्र से
आते प्रकाश का
अँधेरी दीवार पर
पड़ता बिम्ब भी
मेरे लिए
सूरज बन जाता है
उदासियाँ भी
मित्रों की तरह
प्रिय लगने लगती हैं।
यह विस्तृत आकाश भी
छोटा हो जाता है
मेरे नन्हे पंखों के लिए
न अखरता है
आधी रात तक
अनिद्रा का साथ होना
बुरा भी नहीं लगता
पसीने की बूँदों का
निर्लज्जता से
गाल चूम लेना
गर्मियों का
सबसे लंबा दिन
तुम्हारे ख्याल के धागे सुलझाते
जाने कैसे बीत जाता है
और तपती धूप में भी
नहीं होता है
तन को पीड़ा का अनुभव
उस वक्त जब मेरे
समस्त अस्तित्व और
आत्मा के रोम - रोम पर
होता है
सिर्फ तुम्हारा अधिकार।