भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ढीठ अँधेरे / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:19, 12 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेरणा सारवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जाने कैसे आजाते हैं
रात पड़े
यह अंधे अँधेरे
आँगन में बतियाते रहते
ढीठों से यह पाँव पसारे
जब भी देखो
बैठे ही हैं
घर का हर इक
कोना घेरे
दरवाज़े पर
यूँ मिलते हैं
जैसे ताले देते पहरे
आ-आकर सब
लौट गए हैं
दीपक जुगनू
टूटे तारे
छुप -छुप कर
रोते हैं मुझ पर
इस दुनिया के
साँझ - सवेरे।