भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खिड़की की धूप / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:24, 12 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेरणा सारवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खिड़की की धूप की तरह
तुम मेरी ज़िन्दगी में
आते हो
मैं छूने को
हाथ बढ़ाती हूँ
और तुम
साबुन के
बुलबुले की तरह
उड़ जाते हो
मैं सोचती हूँ
तुम्हारे पीछे _ पीछे
चुपके से आऊँ
मगर तुम हो कि
किसी भी लहर के साथ
तिनके की तरह बहकर
आगे निकल जाते हो
तुम्हारी चाह में
भटकती रहूँगी मैं
कहाँ - कहाँ
तुम यह क्यों
भूल जाते हो