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गळगचिया (30) / कन्हैया लाल सेठिया

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पानड़ो झर‘र पाणी में पड़ग्यो । डूब्यो कोनी तिरण लागग्यो। मन में फूलीज‘र रूँख नै कयो, मैं किस्यो‘क हुँष्यार तिराक हूँ ? सिंइयाँ पड़ताँ ही रूँख कयो - पानड़ा एकर अठीनै आई जे !
पानड़ो रोंवतो सो बोल्यो-म्हारै सारै री बात कोनी ।