Last modified on 17 मार्च 2017, at 16:31

गळगचिया (63) / कन्हैया लाल सेठिया

आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:31, 17 मार्च 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नीमड़ै रो रूँख मतीरै री बैल नै हँस‘र कयो म्हारी टोखी तो आभे नै नावड़ै है‘र तूँ धूड़ पर ही पसरयोडी पड़ी है ?
मतीरै री बैल बोली पैली थारै फळ कानी देख पछै म्हारै स्ँयू बात करीजे!