अभी मैं नहीं मरूंगा
अभी करने हैं बहुत काम
अभी लिखनी हैं कविताएं
और उनमें उगाने हैं हरे-भरे खुशमिजाज पेड़
झील दरिया और गुनगुनाता हुआ जंगल...
दलदल अभी बहुत है-इसे साफ करना है
झाड़ना-पोंछना है धरती को, जोतने हैं खेत
चिड़ियों के चुग्गों का इंतजाम करना है
अभी करने हैं बहुत काम
कुछ और नहीं तो मचाऊंगा कुहराम
अभी बिजलियों का घेरा तोड़कर
घूमना है आसमान
अभी तो मेरे सामने है कुल जहान।
अभी तो बांहों में बांहें फंसा उलटने हैं
कई पहाड़
करनी हैं क्रांतियां,
अभी तो आसमान-धरती का करना है गठबंधन
और तमाम टीले पीठ पर उठाकर ले जाने हैं
समंदर पार
अभी पाटनी हैं खाइयां
अभी तो हलचलों जैसी हलचल भरनी है
वक्त की छाती में
अभी हरापन लाना है मौसम की पाती में
अभी मिट्टी से पैदा करने हैं तूफान....
और समतल करने हैं रेत के बड़े-बड़े ढूह
अभी तो काटने हैं झाड़-झंखाड़। स्वाहा
करना है कबाड़....
अभी शबें में लगानी है आग
गुजरे जमाने के पत्थरों, खंडहरों, किलों में
जगाना है राग
और रचनी है एक नई, बिलकुल नई चमचमाती दुनिया
अभी तो बहुत छोटी है मेरी मुनिया
अभी उसे बड़ा करना है
और साथ-साथ लड़ना है-
बड़ी कठिन चढ़ाइयां चढ़ना है।
अभी तक तो बस यूं ही रही भागमभाग
अभी फूलों से रंगों से खेला कहां फाग
अभी तो हाथ तापते बातें करनी हैं दोस्तों से
दुनिया जहान की
अभी तो दुक्खों को सुनहरा करना है
अभी तो मुझे जीना है
अभी मैं नहीं मरूंगा
अभी मुझे करने हैं बहुत काम।