Last modified on 23 मार्च 2017, at 09:09

शांतिपाठ / अमरेन्द्र

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:09, 23 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=साध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यही समय है, चुप मत बैठो, साधो सुर का देश
जग के कोलाहल से कैसा छलनी-छलनी मन है
चल कर आने मंे डरता है, अब तो मलय पवन है
चैता, होरी, कजरी, झूमर सब ही तो हैं शेष ।

साधो सुर का देश, लोक में साम गान हो अब तो
बरसे वाणी का अमृत वीणा के सुर में छलछल
सुख समाधि का बहे अहर्निश तीनों पुर में छलछल
सब के मन में लोकहितों का एक ध्यान हो अब तो ।

सुर से, कविता से, चित्रों से या फिर नृत्य वलय से
पागल प्रेत बने इस युग को हमें रोकना होगा
अंगुलीमाल उन्मत्त हुआ फिर, इसे टोकना होगा
क्यों मृदंग न शोर करेगा, कुछ भी नहीं जो लय से !

साधो सुर का देश, शोर का शीतल-शांत हृदय हो
चाहे जितना जेठ जले, पर फागुन चैत-निलय हो ।