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सूरज का रथ खींचो / अमरेन्द्र

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छट जाए तम घिरा हुआ यह, घिरता हुआ अंधेरा
अभी-अभी तो भोर हुआ है, उठा नहीं है सूरज
अभी सरोवर में खोए-से खिले नहीं हैं पंकज
कौन अघोरी डाल रहा किरणों पर तम का फेरा ।

अभी-अभी तो चिड़ियों ने हैं अपनी चोंचें खोली
उड़ने को कुछ इधर-उधर ज्यों, पंख अभी है डोले
कलरव करने को शावक भी चंचू अपने तोले
जाल बिछाए घूम रही है व्याधाओं की टोली ।

नवयुग की आहट कानों में आती दिशा-दिशा से
नागफनी पर देखो तो कुछ फूल खिले दिखते हैं
पहली बार हुआ ऐसा है, पत्थर कुछ लिखते हैं
निकल रही है किरणों की मोहक-सी छटा निशा से ।

आओ धरती भर के लोगो, सूरज का रथ खींचो
अध्र्य चढ़ाने की वेला है, कीचड़ नहीं उलीचो ।