भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब आयेगा मधुमास / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:41, 23 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=साध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कल ही तो संदेश मिला है आयेगा मधुमास
मैं अपने आँगन में बैठा चिन्ता से मरता हूँ
तरह-तरह की बात सोच कर मन-ही-मन डरता हूँ
कहीं टूट न जाए उसका सदियों का विश्वास ।
किस पोखर या झील किनारे बैठेगा वह आ कर
कहाँ मतायेगा महुए की महक लगाए छाती
कैसे कोयल के कण्ठों में गायेगा वह प्राती
किस अमराई में बैठे वह छेड़ेगा चैतावर ।
कहाँ मिलेंगे हारिल, सुग्गे, पपीहे उसको अब तो
और माधवीलता, कनेली के संग ही कचनार
कहाँ मिलेगा टेसू-गुलाबों का सगुनौती प्यार
जाने ये सब कहाँ गये, क्यों नहीं दिखाते अब तो।
कल ही तो संदेश मिला है, आयेगा मधुमास
कैसे होगा स्वागत उसका, क्या है मेरे पास ।