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घटनाक्रमक वर्णन / भाग 3 / रमापति चौधरी

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जखनहि सुनलहुँ यक्ष युधिष्ठिर ओ संवाद अनमोलो
एक-एक प्रश्नक उत्तर केँ देल युधिष्ठिर तौले
यक्षरूप बनि धर्मराजपुनि आशिष देलन्हि जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥31॥

जखनहि सुनलहुँ गुप्त रूपसँ पाण्डवगण रचि वेषे
मत्स्यराज शरणागत रहला भांपि न सकला शेषे
यत्नशील रहितहुँ मम सुत सब ताकि न सकला जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥32॥

जखनहि सुनलहुँ वीरबली कीचक भरि संसारक
अपटी खेतहि प्राण गमौलक कारण छल कुविचारक
दृष्टि कुदृष्टि देखि द्रौपदि पर, मारल भीमा जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥33॥

जखनहि सुनलहुँ कौरवगण मिलि हरलन्हि गौ मछराजक
दलबल सहित पराक्रम कयलन्हि दालि नै गललन्हि काजक
एकरथी एकसर अर्जुन भय विरथी कयलनि जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥34॥

जखनहि सुनलहुँ नृपति विराटो साञ्जलि कन्या देलन्हि
पार्थ स्वयं स्वीकार नै कयलन्हि पुत्रक हित से लेलन्हि
छात्रा शिष्य पुत्रि सम बुझिकेँ रीति देखाओल जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥35॥

जखनहि सुनलहुँ विजित युधिष्ठिर निष्कासित भय वनमे
सखा समाज सबहुँ सँ बिछुड़ल छथि घुमइत रनवन मे
अक्षौहिणी सात धरि तैयो कयल एकट्ठा जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥36॥

जखनहि सुनलहुँ स्वयं महाप्रभु पाण्डव हेतु बितौलन्हि
सर्वोत्सर्ग कृष्ण कय देलन्हि सारथि भय दर्शौलन्हि
जनिक अतुल बल बुद्धि पराक्रम सोचि न सकले जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥37॥

जखनहि सुनलहुँ कृष्णार्जुन छथि दुइ अवतारस्वरूपे
नरनारायण सद्यः मिलिकेँ क्षिति विचरथि एहि रूपेँ
नारद वर्णित स्वयं कान सँ सुनलहुँ संजय जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥38॥

जखनहि सुनलहुँ स्वयं आबिकेँ कयल कृष्ण कल्याणक
वार्ता, समुचित सभक बीच मे चाही सबकेँ मानक
काल विवश किछु ध्यान न देलन्हि ममसुत जिद्दी जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥39॥

जखनहि सुनलहुँ कर्ण सुयोधन मिलिकेँ कयल विचारे
केशव केँ यदि बंदी कयली सफल मनोरथ द्वारे
किन्तु देखि तनि रूप विराटक भकचक भेला जखने
विजय आस संजय हम त्यागल भय निराश पुनि तखने॥40॥