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दशरथ मांझी / कर्मानंद आर्य

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रास्ता राजा नहीं बनाता
रास्ता प्रजा नहीं बनाती
रास्ता सेनायें नहीं बनाती
रास्ता बनाती है ह्रदय की टीस

उठते हैं हाथ तो बनता है रास्ता
मिलते हैं हाथ तो बनता है रास्ता
उठती है हवा तो बनता है रास्ता
रास्तों का इतिहास
बनाता है रास्ता

किसी दशरथ मांझी के खून में
बैठा होता है एक दलित
जिसे आप कायर समझते हैं
वह बनाता है रास्ता
एक नहीं हजारो प्रियतमाओं के लिए

खोल देता है जाने कितने अवसर
हथौड़ा उठता है
उठाता है एक बिहारी
तोड़ता है एक सामाजिक जकड़न

सोच तोड़ता है पूरी पूरी रात
ठंडी करता है जातीय गर्मियां
अपने खून मिश्रित पसीने से

उसकी प्रियतमा का पाँव है उसका गाँव
प्रियतमा का खेत है उसका मन
प्रियतमा का आँचल है उसकी रोजमर्रा की जिन्दगी
वह बनाता है हर रोज एक रास्ता
अपनी उस प्रियतमा की याद में

वह डूबकर काटता है पत्थर
घास से नहीं, ह्रदय में उपजी गड़ेंतियों से

वह लिखता है रोज एक नाम
समुद्र में तैराने के लिए नहीं
रास्ता बनाने के लिए

उसके खोदे हुए पत्थर से निकलता है पानी
उसके खोदे हुए पत्थर से निकलती है आग

फिर निकलता है एक रास्ता