भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँदनी में नहाए हुए हैं / चेतन दुबे 'अनिल'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:34, 30 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चेतन दुबे 'अनिल' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चाँदनी में नहाए हुए हैं
अश्क फिर भी बहाए हुए हैं
चार दिन जिन्दगी में रही वो
महल सपनों के ढाए हुए हैं
चाँद क्यों मुझको यों देखता है
आजकल हम पराए हुए हैं
कोकिले ! किसलिए कूकती हो
राग सब मेरे गाए हुए हैं
आपको क्या बताएँ कहानी
किसके हाथों सताए हुए हैं
जिन्दगी में न भूले कभी जो
हम सजा ऐसी पाए हुए हैं
कौन अब दर्द मेरा बटाए
उनको दिल में बसाए हुए हैं
गैर क्या खा के समझेंगे मुझको
वो ही दिल में समाए हुए हैं